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कश्मीर में आई बाढ़,65 से ज्यादा लोगों की मौत

कश्मीर में आई बाढ़,65 से ज्यादा लोगों की मौत

जम्मू-कश्मीर का किश्तवाड़ जिला हाल ही में एक ऐसी प्राकृतिक आपदा का गवाह बना जिसने न सिर्फ स्थानीय लोगों की ज़िंदगी बदल दी बल्कि पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया। किश्तवाड़ के चसोटी गांव में बादल फटने के बाद आई बाढ़ और मलबे में दबने से अब तक 65 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग घायल हैं और कई अभी भी लापता बताए जा रहे हैं।

 

इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि प्रकृति के सामने इंसान कितना असहाय है। आधुनिक विज्ञान और तकनीक के बावजूद, अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के सामने हमारी तैयारी अक्सर नाकाफी साबित होती है।

 

कैसे आई बाढ़

चसोटी गांव की पहाड़ियों पर अचानक काले बादल छा गए। कुछ ही देर में तेज़ गर्जना के साथ बारिश शुरू हुई और देखते ही देखते हालात भयावह हो गए। बादल फटने से नालों और छोटी धाराओं में अचानक भारी पानी का बहाव आया। पानी के साथ बड़े-बड़े पत्थर, कीचड़ और मलबा तेजी से गांव की ओर बढ़े।

 

गांव के लोग समझ भी नहीं पाए और उनके घरों में पानी व मलबा घुस गया। कई मकान पूरी तरह बह गए, खेत बर्बाद हो गए और लोगों की मेहनत की कमाई पल भर में मिट्टी में मिल गई। सबसे दर्दनाक बात यह रही कि कई लोग सोते हुए ही इस त्रासदी की चपेट में आ गए। चसोटी गांव में इस समय हर घर से चीख-पुकार सुनाई दे रही है। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, उनके लिए ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई है। कोई अपने बच्चों को ढूंढ रहा है, तो कोई अपने माता-पिता या भाई-बहन को।स्थानीय लोगों के मुताबिक, “यह मंजर इतना डरावना था कि लोग अपनी जान बचाने के लिए भागते रहे, लेकिन पानी और मलबा इतना तेज़ था कि सब कुछ अपने साथ बहा ले गया।”

 

बचाव और राहत कार्य

आपदा के तुरंत बाद प्रशासन, सेना, NDRF और SDRF की टीमें मौके पर पहुंच गईं। हेलिकॉप्टर और ड्रोन की मदद से मलबे में दबे लोगों को खोजने का प्रयास किया जा रहा है। घायलों को पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है और गंभीर रूप से घायल लोगों को हवाई मार्ग से जम्मू शिफ्ट किया गया।

 

सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा देने का ऐलान किया है और साथ ही राहत शिविर भी बनाए गए हैं, ताकि बेघर हुए लोग अस्थायी रूप से सुरक्षित जगह पर रह सकें।

बादल फटना कोई साधारण घटना नहीं होती। जब वायुमंडल में नमी बहुत ज्यादा हो जाती है और बादल एक छोटे से क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में पानी छोड़ते हैं, तो उसे बादल फटना कहते हैं। यह आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है, जहां भौगोलिक संरचना के कारण पानी का बहाव अचानक बहुत तेज़ हो जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।

पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ता खतरा

हिमालयी क्षेत्रों में हर साल बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं। अनियंत्रित निर्माण कार्य, जंगलों की कटाई और नदियों-नालों के किनारे बस्तियां बसाने से खतरा और बढ़ गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि विकास कार्यों में पर्यावरण का ध्यान न रखा गया तो आने वाले वर्षों में ऐसी आपदाएं और ज्यादा गंभीर रूप ले सकती हैं।

 

ऐसी घटनाओं के बाद अक्सर मुआवज़े और राहत कार्य की घोषणाएं होती हैं, लेकिन असली ज़िम्मेदारी है आपदा प्रबंधन की मजबूत व्यवस्था बनाना। सरकार को चाहिए कि पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों को समय-समय पर जागरूक किया जाए, अलर्ट सिस्टम को मजबूत किया जाए और सुरक्षित बस्तियां बसाने की योजना बनाई जाए।

 

साथ ही, स्थानीय लोगों को भी चाहिए कि वे नदियों और नालों के किनारे घर न बनाएं और पर्यावरण की रक्षा में सहयोग करें

किश्तवाड़ की यह घटना हमें यह सिखाती है कि इंसान चाहे जितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, प्रकृति के सामने उसकी शक्ति नगण्य है। ज़रूरी यह है कि हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जियें, न कि उसके खिलाफ।

आज चसोटी गांव के लोग बेसहारा हो गए हैं। उनका दर्द पूरे देश को झकझोर रहा है। ऐसे समय में हमें न सिर्फ संवेदनाएं प्रकट करनी चाहिए, बल्कि एकजुट होकर उनकी मदद करनी चाहिए।

चसोटी गांव की यह त्रासदी सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लिए चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण का विनाश और अनियंत्रित विकास हमें ऐसी आपदाओं की ओर धकेल रहे हैं। यदि समय रहते हमने सबक नहीं लिया, तो आने वाली पीढ़ियों को और भी बड़ी त्रासदियों का सामना करना पड़ेगा।

आज जरूरत है कि हम सब मिलकर न सिर्फ चसोटी जैसे पीड़ित गांवों की मदद करें, बल्कि भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।

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